Wednesday, February 27, 2019

RSS शाखा बौद्धिक योजना कोलकाता आईटी मिलान , मार्च अप्रैल २०१९

  1. गीत - बने हम हिंद के योगी
  2. अमृत वचन- जब कोई मनुष्य अपने पूर्वजों के बारे में लज्जित होने लगे, तब समझ लेना उसका अंत हो गया। मैं यद्धपि हिन्दू जाति का नगण्यघटक हूँ, किन्तु मुझे अपनी धर्म पर गर्व है, अपने पूर्वजों पर गर्व है। मैंस्वयं को हिन्दू कहने में गर्व का अनुभव करता हूँ ।- स्वामी विवेकानन्द
  3. सुभाषित -
परो अपि हितवान् बन्धु: ,बन्धु: अपि अहित: पर: |
अहित: देहज: व्याधि: , हितम् आरण्यम् औषधम् ||
भावार्थ:
जो हमें हमारे संकट समय मदद करते हैं वही हमारे सच्चे रिश्तेदार कहे जाते है, नही की खानदानी रिश्तेवाले जो हमें तंग करते रहते है । जिस तरह अपनी बीमारी अपनेको बहुत ही परेशान करती है मगर दूर जंगल का पौधा एक दवाईका काम कर जाता है
  1. समाचार समीक्षा
  2. बौधिक - १५ मिनट , श्री गुरुजी के संबंध में
  3. बोध-कथा
  4. चर्चा -
(अ) हिंदू धर्म में जातिवाद की सच्चाई
(ब) मतदान को शत-प्रतिशत तक पहुचनें में हमारा दायित्व




गीत

बने हम हिंद के योगी धरेंगे ध्यान भारत का
उठाकर धर्म का झंडा करें उत्थान भारत का

गले में शील की माला,पहन कर ज्ञान की कफनी
पकड़कर त्याग का झन्डा,रखेंगे मान भारत का

बने हम हिंद के योगी धरेंगे ध्यान भारत का
उठाकर धर्म का झंडा करें उत्थान भारत का

जलाकर कष्ट की होली,उठाकर इष्ट की झोली
बनाकर संत की टोली,करे उत्थान भारत का
बने हम हिंद के योगी धरेंगे ध्यान भारत का
उठाकर धर्म का झंडा करें उत्थान भारत का
स्वरों में तान भारत की,है मुख में आन भारत की
रगों में रक्त भारत का,नयन में मूर्ति भारत की
बने हम हिंद के योगी धरेंगे ध्यान भारत का
उठाकर धर्म का झंडा करें उत्थान भारत का

हमारा जन्म हो सार्थक,हमारे मृत्यु का कारण
हमारे स्वर्ग का साधन,यही उत्थान भारत का
बने हम हिंद के योगी धरेंगे ध्यान भारत का
उठाकर धर्म का झंडा करें उत्थान भारत का

वन्देमातरम,जय हिंद...!!!

बौधिक - १५ मिनट , श्री गुरुजी के संबंध में. बौद्धिक कम से कम १५ मिनट का होना चिहिए। शारीरिक का कालांश बौद्धिक के लिए दे सकते हैं।

संघ के संस्थापक डा. हेडगेवार ने अपने देहान्त से पूर्व जिनके समर्थ कंधों पर संघ का कार्यभार सौंपा, वह थे श्री माधवराव सदाशिव राव गोलवलकर, जिन्हें हम सब प्रेम से श्री गुरुजी कहकर पुकारते हैं। ‘परंम् वैभवम नेतुमेतत्वस्वराष्ट्रं’ यानी राष्ट्र को परम वैभव की ओर ले जाने के लिए संघ कार्य को अपना संपूर्ण जीवन समर्पित करने वाले श्री गुरुजी की आज जयंती है।

गुरुजी का का जन्म 19 फरवरी, 1906 (विजया एकादशी) को नागपुर में अपने मामा के घर हुआ था। उनके पिता श्री सदाशिव गोलवलकर उन दिनों नागपुर से 70 कि.मी. दूर रामटेक में अध्यापक थे। उन्हें बचपन में सब प्रेम से माधव कहते थे।

माधव बचपन से ही अत्यधिक मेधावी छात्र थे। उन्होंने सभी परीक्षाएं सदा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कीं। कक्षा में हर प्रश्न का उत्तर वे सबसे पहले दे देते थे। अतः उन पर यह प्रतिबन्ध लगा दिया गया कि जब कोई अन्य छात्र उत्तर नहीं दे पायेगा, तब ही वह बोलेंगे। एक बार उनके पास की कक्षा में गणित के एक प्रश्न का उत्तर जब किसी छात्र और अध्यापक को भी नहीं सूझा, तब उन्हें बुलाया गया उन्होंने आसानी से वह प्रश्न हल कर दिया।

वे अपने पाठ्यक्रम के अतिरिक्त अन्य पुस्तकें भी खूब पढ़ते थे। नागपुर के हिस्लाप क्रिश्चियन कॉलिज में प्रधानाचार्य श्री गार्डिनर बाइबिल पढ़ाते थे। एक बार गुरुजी ने उन्हें ही गलत अध्याय का उद्धरण देने पर टोक दिया। जब बाइबिल मंगाकर देखी गयी, तो उनकी बात ठीक थी। इसके अतिरिक्त हॉकी व टेनिस का खेल तथा सितार एवं बांसुरीवादन भी उनके प्रिय विषय थे।

उच्च शिक्षा के लिए काशी जाने पर उनका सम्पर्क संघ से हुआ। वे नियमित रूप से शाखा पर जाने लगे। जब डा. हेडगेवार काशी आये, तो उनसे वार्तालाप के बाद गुरुजी का संघ के प्रति विश्वास और दृढ़ हो गया। एम. एस.सी. करने के बाद वे शोधकार्य के लिए मद्रास गए लेकिन वहां का मौसम अनुकूल न आने के कारण वे काशी विश्वविद्यालय में ही प्राध्यापक बन गये।

उनके मधुर व्यवहार तथा पढ़ाने की अद्भुत शैली के कारण सब उन्हें ‘गुरुजी’ कहने लगे और फिर तो यही नाम उनकी पहचान बन गया। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक मालवीय जी भी उनसे बहुत प्रेम करते थे। कुछ समय काशी रहकर वे नागपुर आ गये और कानून की परीक्षा उत्तीर्ण की। उन दिनों उनका संपर्क रामकृष्ण मिशन से भी हुआ और वे एक दिन चुपचाप बंगाल के सारगाछी आश्रम चले गये। वहां उन्होंने विवेकानन्द के गुरुभाई स्वामी अखंडानन्द जी से दीक्षा ली।

स्वामी जी के देहान्त के बाद वे नागपुर लौट आये तथा फिर पूरी शक्ति से संघ कार्य में लग गये। उनकी योग्यता देखकर डा0 हेडगेवार ने उन्हें 1939 में सरकार्यवाह का दायित्व दिया। अब पूरे देश में उनका प्रवास होने लगा। 21 जून, 1940 को डा. हेडगेवार के शरीर त्यागने के बाद श्री गुरुजी सरसंघचालक बने। उन्होंने संघ कार्य को गति देने के लिए अपनी पूरी शक्ति झोंक दी।

1947 में देश आजाद हुआ। पर उसे विभाजन का दंश भी झेलना पड़ा। 1948 में गांधी जी हत्या का झूठा आरोप लगाकर संघ पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। श्री गुरुजी को जेल में डाल दिया गया। इसके बाद भी उन्होंने धैर्य से सब समस्याओं को झेला और संघ तथा देश को सही दिशा दी। इससे सब ओर उनकी ख्याति फैल गयी। संघ-कार्य भी देश के हर जिले में पहुंच गया।

श्री गुरूजी का प्रारम्भ से ही आध्यात्मिक स्वभाव होने के कारण सन्तों के श्री चरणों में बैठना, ध्यान लगाना, प्रभु स्मरण करना, संस्कृत व अन्य ग्रन्थों का अध्ययन करने में उनकी गहरी रूचि थी। उनका धर्मग्रन्थों एवं विराट हिन्दू दर्शन पर इतना अधिकार था कि एक बार शंकराचार्य पद के लिए उनका नाम प्रस्तावित किया गया था, जिसे उन्होंने सहर्ष अस्वीकार कर दिया। श्री गुरूजी को अनेकों आध्यात्मिक विभूतियों का प्यार व सानिध्य प्राप्त था। श्री गुरूजी का राष्ट्रजीवन में भी अप्रतिम योगदान था। संघ कार्य करते हुए वे निरंतर राष्ट्रचिंतन किया करते थे।

जब कभी भारत की एकता, अखण्डता की बात होगी, तब-तब गुरूजी द्वारा राष्ट्रजीवन में किए गए योगदान की चर्चा अवश्य होगी। चाहे स्वतंत्रता के बाद कश्मीर विलय हो या फिर अन्य कोई महत्वपूर्ण प्रकरण। श्री गुरूजी को राष्ट्रीय सीमाओं की सुरक्षा की भारी चिंता लगी रहती थी। वह कहा करते थे कि भारत कर्मभूमि, धर्मभूमि और पुण्यभूमि है। यहां का जीवन विश्व के लिए आदर्श है। भारत राज्य नहीं राष्ट्र है। राष्ट्र बनाया नहीं गया, अपितु यह तो सनातन राष्ट्र है। श्री गुरूजी द्वारा प्रदत्त महान विचार पुंज तेजस्वी भारत राष्ट्र की परिकल्पना की सृष्टि करता है। श्री गुरूजी की आध्यात्मिक शक्ति इतनी प्रबल थी कि ध्यान इत्यादि के माध्यम से उन्हें आने वाले संकटों का आभास भी हो जाता था। श्री गुरूजी निरंतर राष्ट्र श्रद्धा के प्रतीकों का मान, रक्षण करते रहे. वे सदैव देशहित में स्वदेशी चेतना स्वदेशी, व्रत स्वदेशी जीवन पद्धति, भारतीय वेशभूषा तथा सुसंस्कार की भावना का समाज के समक्ष प्रकटीकरण करते रहे। वे अंग्रेजी तिथि के स्थान पर हिंदी तिथि के प्रयोग को स्वदेशीकरण का आवश्यक अंग मानते थे। गौरक्षा के प्रति चिंतित व क्रियाशील रहते थे। श्री गुरूजी की प्रेरणा से ही गोरक्षा का आंदोलन संघ ने प्रारम्भ किया। विश्व भर के हिंदुओं को संगठित करने के उददेश्य से विश्व हिंदू परिषद की स्थापना की गयी। विद्या भारती के नेतृत्व में अनेकानेक शिक्षण संस्थाओं का श्री गणेश हुआ। उनकी प्रेरणा से सम्भवतः सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण ऐसा ही कोई क्षेत्र छूटा हो, जहां संघ के अनुशांगिक संगठनों का प्रादुर्भाव न हुआ हो।

श्री गुरूजी अपने उदबोधनों में प्रायः यह कहा करते थे कि यदि देश के मात्र तीन प्रतिशत लोग भी समर्पित होकर देश की सेवा करें तो देश की बहुत सी समस्याएं स्वतः समाप्त हो जायेंगी।श्री गुरूजी ने लगभग 33 वर्षों तक संघ कार्य किया और पूरे देश भर में फैला दिया, उनकी ख्याति पूरे देश में ही नहीं अपितु विश्व में भी फैल चुकी थी। वर्ष 1970 में वे कैंसर से पीड़ित हो गए। उनका आॅपरेशन हुआ लेकिन वह पूरी तरह से ठीक नहीं हुए। इसके बाद भी वह लगातार प्रवास करते रहे। अपने समस्त कार्यों का सम्पादन करते हुए श्री गुरूजी ने 5 जून, 1973 को रात्रि में शरीर छोड़ दिया।

बोधकथा

एक क्लास में शिक्षक टेलिस्कोप की कार्य पद्धति समझा रहे थे। उन्होंने पहले छात्र को बुलाया और कहा की जा कर टेलिस्कोप से आकाश की निरिक्षण करे। छात्र ने टेलिस्कोप के अंदर देखा और कहा मुझे कुछ नहीं दिख रहा है। तब शिक्षक ने उसे डांटा और कहा की लेंस को ठीक तरह से घुमा कर व्यस्थित करे। छात्र ने थोड़ी बाद कहा की अब उसे आकाश दिख रहा है और उसमे चन्द्रमा और तारे दिख रहे हैं। उसके बाद शिक्षक ने बाकि छात्रों को कहा की वो भी आ कर निरिक्षण करें। सभी छात्र एक एक कर के आये और सबने कहा की उन्हें आकाश दिख रहा है। जब अंतिम छात्र की बरी आयी तो उसने टेलोस्कोपे के अंदर देखा और कहा की उसे कुछ नहीं दिखा रहा है। शिक्षक को फिर गुस्सा आया और उसने कहा की टेलिस्कोप ठीक से ब्यस्थित करे। छात्र ने कोशिश किया परन्तु फिर कहा की उसे कुछ नहीं दिख रहा। शिक्षक को और गुस्सा आया और उन्होंने खुद आ कर टेलिस्कोप का निरिक्षण किया। शिक्षक ने पाया की टेलिस्कोप के ऊपर का ढक्कन तो अभी भी लगा है। इसका मतलब किसी भी छात्र को कुछ भी नहीं दिखा।  

चर्चा -
(अ) हिंदू धर्म में जातिवाद की सच्चाई
  1. भगवद् गीता विभिन्न वर्णों के सदस्यों के व्यवसायों, कर्तव्यों और गुणों का वर्णन करती है।
  2. ब्राह्मण और क्षत्रिय और वैश्य, सुद्र के रूप में, कर्तव्यों को उनके स्वयं के स्वभाव से पैदा हुए गुण के अनुसार वितरित किया जाता है।
  3. पैट्रिक ओलिवेल, संस्कृत और भारतीय धर्मों के एक प्रोफेसर और वैदिक साहित्य, धर्म-सूत्र और धर्म-शास्त्रों के आधुनिक अनुवाद का श्रेय देते हैं, कहते हैं कि प्राचीन और मध्यकालीन भारतीय ग्रंथ वर्ना प्रणाली के आधार के रूप में अनुष्ठान प्रदूषण, शुद्धता-अशुद्धता का समर्थन नहीं करते हैं।
  4. sangh को तथाकथित उच्च जाति के लोगों के संगठन के रूप में चित्रित करने की कोशिश की जाती है, जो पूरी तरह से गलत है।
    वर्ष 1936 में RSS के संस्थापक डॉ। के बी हेगड़ेवार और डॉ। बी आर अंबेडकर के बीच आरएसएस के एक वार्तालाप के बारे में बातचीत:

    "जब डॉ। अंबेडकर ने 1936 में मकरसंक्रांति के संघ उत्सव की अध्यक्षता की, तो उनका आरोप है कि डॉ। हेडगेवार, जो इस समारोह में उपस्थित थे, अगर आरएसएस के सभी सदस्य ब्राह्मण थे, तो डॉक्टरजी का जवाब था कि जब स्वयंसेवक अपने आदर्श का प्रचार कर रहे थे। और नए सदस्यों को भर्ती करना - अर्थात उनके दिमाग का उपयोग करना - वे ब्राह्मण थे। जब वे अपने दैनिक अभ्यास कर रहे थे, तो वे क्षत्रिय (योद्धा) थे; जब भी वे संघ के लिए धन और अन्य मामलों को संभालते थे, तो वे वैश्य थे, और जब उन्होंने किया स्वच्छता अपने विभिन्न शिविरों और शाखाओं में काम करते हैं, वे शूद्र थे। दूसरे शब्दों में, चार पारंपरिक जातियों का नामकरण करके, जिसमें हिंदू समाज विभाजित है, डॉ। हेडगेवार ने कहा कि आरएसएस उस जाति को प्रदर्शित करने का प्रयास कर रहा था, जिसका मतलब कुछ भी नहीं था। "

(ब) मतदान को शत-प्रतिशत तक पहुचनें में हमारा दायित्व
१। ये निश्चित करें की अपना नाम मतदाता सूचि में है।
२। फिर ये निश्चित करें की अपने परिवार के सभी सदस्यों और सभी परिचितों का नाम मतदाता सूचि में है।
३। आसपास जितने नए मतदाता हुए हैं उनकी नाम जोड़ने का प्रकल्प करें।

४। मतदान के दिन सबसे पहले जा कर मतदान करें ।  

Monday, August 15, 2016

Akhand Bharat Divas 2016

IT Milan kolkata celebrated Akhand Bharat divas on 14 August 2016. Following is the link to PPTs presented during this occasion.

1. Akhand Bharat Sankalp Divas 2016 PPT Part 1
2. Akhand Bharat Sankalp Divas 2016 PPT Part 2

Tuesday, September 8, 2015

On the request of my Prant Pracharak Ji, I created one powerpoint on social issues of Bharat and solution of Sangh. One can download the PPT from this Blog.

Social Issue and their Solution by Sangh